Friday, October 17, 2014

मैं हूँ माटी का दिया




मैं हूँ माटी का दिया. एक कुम्हार के घर पैदा हुआ , एक दीन अवस्था मैं पाल बढ़ा और ज़िन्दगी की आंच मेँ जलकर पक्का हुआ . सोचता हूँ की दिवाली मेँ किसी के घर मेँ उजाला करूँगा . पर क्या कोई मुझ जैसे माटी के माधो को अपने घर ले जायेगा . आपको तो chinese पारियां अच्छी लगती है घर मेँ सजाने के लिए ... टिमटिमाती , रंगबिरंगी छोटी बड़ी .. दिन दिन चलने वाली .. मुझे क्यों ले जाओगे अपने घर.

सोचता हूँ कभी मेरे जन्मदाता के घर भी उजाला करूँगा .. वह दिन रात लग कर मुझे और मेरे भाई बहनों को बनाता है .. ताकि उस के घर भी दिवाली हो .. कुछ बताशे अपने बच्चों को खिला पाये .. कपडे तोह नहीं आयेगे बच्चों के लिए .. शायद पेट भर खाना ही खा पाये .. पर आप तोह १० रूपये के १० देने पर भी मोल भाऊ करोंगे .. "१२ दे दे " .. २ रूपये बचाओगे ..

अच्छा एक बात बोलो .. यह नयी नयी बड़ी दुकानो.., क्या बोलते है उसे ..माल्स.. शॉपिंग माल्स वहां एक बर्गर के कितना पैसे देते हो .. और कितना टैक्स देते हो .. क्या वहां भी मोल भाव करते हो .. ना ना वहां कैसे ..वहां तो २५ रूपये के मैक्डोनल बर्गर पर १७ रूपये टैक्स देते हो .. ५०० रूपये पिज़्ज़ा के देते हो और टिप्स भी १०० से कर नहीं देते, ताकि इज़्ज़त बानी रहे .. तोह मेरे से २ रूपये क्यों बचते हो ..

कितने बना पायेगा मेरा बुद्धा बाप दिन भर मेँ और कितने बेच पायेगा ..दस हज़ार दिए ..तोह कितना कमायेगा १००० रूपये .. और यही दिवाली है.. आपकी भी और मेरी भी ... शायद उस के घर मेँ भी मेँ माटी का दिया उजाला कर सकु , और आपके घर मेँ भी .

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